खबर सक्ती ...
मोबाइल मेडिकल यूनिट में दवाइयों की किल्लत— शासन की महत्वाकांक्षी योजना धरातल पर लड़खड़ाई ..

सप्लायर-प्रशासन की लापरवाही से मुफ्त इलाज योजना बेअसर, मरीजों में बढ़ा आक्रोश ,
170 दवाइयों का नियम, 50 दवाइयां भी मौके पर उपलब्ध नहीं— सक्ती में मोबाइल मेडिकल यूनिट स्वास्थ्य सेवा बनी मजाक ..
सक्ती, छत्तीसगढ़ सरकार गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को घर-घर मुफ्त इलाज और दवाई उपलब्ध कराने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर बयां कर रही है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना—स्वास्थ्य परामर्श आपके घर तक का सक्ती जिले में जिस तरह से मजाक बन रहा है, वह न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है।
मोबाइल मेडिकल यूनिट का उद्देश्य था कि हर मोहल्ले में जाकर मरीजों को न सिर्फ जांच और परामर्श मिले, बल्कि आवश्यक दवाइयां भी मौके पर उपलब्ध हों। नियमों के मुताबिक इन यूनिटों में 170 प्रकार की दवाइयों का स्टॉक अनिवार्य है, लेकिन वास्तविक स्थिति शर्मनाक और चिंताजनक है— 50 प्रकार की दवाइयां तक भी उपलब्ध नहीं हैं। विगत कई महीनों से यह हालत जस की तस बनी हुई है।
सबसे जरूरी दवाइयों की भी भारी कमी है। आयरन, कैल्शियम, एमोक्सी, एजिथ्रोमाइसीन, सर्दी-खांसी की सिरप, सेटिरिज़िन, एमोक्सी सिरप, पेरासिटामोल, बी-कॉम्प्लेक्स, एसप्रो, डायक्लो जेल, बेटाडिन—ऐसी कई बुनियादी दवाइयां जिनके बिना प्राथमिक उपचार अधूरा है, मोबाइल यूनिटों में उपलब्ध ही नहीं हैं। हालत यह है कि डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी बिना दवा के केवल परामर्श देकर लौटने को मजबूर हैं, जबकि मरीजों को बाहर से महंगी दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं।
विभाग के संबंधित अधिकारी काजल साहू ने मोबाइल पर स्वीकार किया कि दवाइयों की कमी बनी हुई है। उन्होंने बताया— रिक्वायरमेंट लगातार भेजा जा रहा है, लेकिन वेंडर द्वारा दवाइयों की सप्लाई नहीं की जा रही है।
दूसरी ओर, मुख्य नगर पालिका अधिकारी प्रहलाद पांडे ने दवा सप्लायर को नोटिस जारी किए जाने की पुष्टि भी की और कहा कि तत्काल दवाइयां उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि, नोटिस से कितना फर्क पड़ेगा और कार्रवाई कब तक होगी, यह बड़ा सवाल है।
मोबाइल मेडिकल यूनिट की यह लापरवाही केवल कागजी खानापूर्ति भर नहीं, बल्कि गरीबों के स्वास्थ्य के साथ सीधा खिलवाड़ है। शासन लाख कोशिश करे, लेकिन जब जमीनी स्तर पर ठेकेदार ही मनमानी करने लगें और अधिकारियों पर कार्रवाई की जगह सिर्फ नोटिस तक सीमित रह जाएं, तब योजनाएं फाइलों में चमकती रह जाती हैं और जनता को राहत के नाम पर निराशा ही मिलती है।
सक्ती जिले में यह स्थिति अब आम जनता के बीच रोष का कारण बन चुकी है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब सरकार मुफ्त इलाज और दवाई की बात करती है, तो इसी सरकारी व्यवस्था में दवा क्यों गायब है? क्या शासन प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेकर वेंडर पर ठोस कार्रवाई करेगा, या फिर यह मोबाइल मेडिकल यूनिट सच में ‘चलती फिरती मजाक यूनिट’ बनकर रह जाएगी?
समय की मांग है कि सरकार तत्काल हस्तक्षेप करे, सप्लायर पर कठोर कार्रवाई हो, और गरीबों के लिए बनाई गई योजना को जमीन पर ईमानदारी से लागू किया जाए—वरना ये योजनाएं सिर्फ भाषणों और बैनरों में ही दम तोड़ देंगी।
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