खबर सक्ती ...
बड़े मूल्य के नोट प्रचलन से बाहर होना लोकतंत्र में लोकहित का संदेश है जो स्वागतेय है… अधिवक्ता चितरंजय पटेल ..
सक्ती, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 2,000 रुपये के नोट को चलन से बाहर करने की घोषणा कर दी है. 30 सितंबर के बाद यह नोट मान्य नहीं होगा. लोग एक बार में 2 हजार रुपये के केवल 10 नोट की बदलवा पाएंगे, वहीं आरबीआई के इस फैसले का कांग्रेस, टीएमसी और आम आदमी पार्टी ने विरोध किया है… यह खबर ही अपने आप में उन विरोध करने वालों पर गिरती गाज के संकेत है क्योंकि चुनावी फंडिंग या कहें ब्लैक मनी के रूप में इन दलों के पास शायद इसका अकूत भंडार मौजूद है जिसे एडजस्ट करना आसान नहीं लग रहा है क्योंकि ये वही राजनीतिक दल हैं जिनके शुभचिंतकों के तार गाहे बगाहे विदेशों से जुड़े होना एक्सपोज होते रहे हैं।
अगर बड़े नोटों के प्रचलन को लेकर गंभीरता से विचार करें तो साफ नजर आता है कि भ्रष्टाचार के सबसे बड़े कारक बड़े मूल्य के नोट ही हैं जिसे बंद कर आर बी आई ने सटीक व सामयिक निर्णय लिया है क्योंकि साल भर के भीतर पूरे देश में कई राज्यों के साथ ही केंद्र में भी आम चुनाव सुनिश्चित है जहां इन बिना हिसाब के बेहिसाब नोटों का खुले आम बंदरबांट संबंधित राजनीतिक दल के लोग करते, जिसका झलक हालिया कर्नाटक चुनाव में हुए वायरल वीडियो में हमने देख ही लिया है।
वैसे भी हम स्थानीय स्तर खासा अनुभव रखते हैं कि 500 और उससे बड़े मूल्य के नोट बाजार में जारी होते ही घुसखोरी और भ्रष्टाचार का ये आलम रहा है कि ऑफिसों में दरबान भी अधिकारी से मिलाने मात्र के लिए 500 रु की ख्वाहिश रखता है अर्थात कहने का मतलब है कि बड़े मूल्य के नोट बाजार में आने से बाजारों में सामानों की मूल्यवृद्धि स्वाभाविक रूप से होती है क्योंकि उत्पाद या आवश्यक वस्तुओं की मौजूदगी उस अनुपात पर बढ़ी नहीं पर लोगों के घर बड़े बड़े नोट आ जाने से मांग आपूर्ति का संतुलन बिगड़ कर वस्तुओं के मूल्य स्वाभाविक रूप से बढ़ गए। अगर इसे ठेठ सरल भाषा में समझें तो भ्रष्टाचार या घुस के पैसे अक्सर नगद राशि से ही लिए_ दिए जाते हैं तब अगर बड़े मूल्य के नोट प्रचलन में न हो तो सामान्यतः 10 लाख की रकम सूटकेस में ही संभव है पर वही दो हजार मूल्य के नोट हमारे पॉकेट में ही समा जाते थे। इसलिए चाहे भ्रष्टाचार या अवैधानिक गतिविधियो पर रोकथाम हो या अप्रत्याशित मूल्यवृद्धि हो रोकना हो बड़े नोटों का प्रचलन आमजन के हित में ही नहीं है।
यद्यपि दो हजार मूल्य का नोट सरकार द्वारा पहले ही नहीं लाना था पर देर से ही सही रिजर्व बैंक द्वारा नोटबंदी आम लोगों के हित में होने से स्वागत है क्योंकि कागजों में बड़े नोट छाप देने भर से कुछ नहीं होता जब उसके अनुपात में आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन संभव ही नहीं है और यही कारण है कि महगाई बढ़ती है और कर्मचारियों के महंगाई भत्ते के नाम पर तनखा बढ़ता है पर बेचारा आम आदमी पिसता रह जाता है जो आज आपको साफ नजर आता है कि जब जब बड़े मूल्य के नोट बाजार में आए है तब तब सोना चांदी के साथ आवश्यक वस्तुओं के दाम अप्रत्याशित रूप से बढ़े हैं । कुल मिलाकर बड़े मूल्य के नोट प्रचलन से बाहर होने से लोकतंत्र में लोकहित का संदेश है जो स्वागतेय है… चितरंजय सिंह पटेल अधिवक्ता उच्च न्यायालय बिलासपुर।
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