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अधर्म के विनाश के लिए भगवान लेते हैं अवतार ..
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गृहस्थ जीवन में जीना सीखें भगवान शिव से ,
निर्मल मन जन को ही भगवान की प्राप्ति होती है एवं भगवान कण-कण में विद्यमान हैं- कथा व्यास पूज्य अतुल कृष्ण भारद्वाज जी महाराज ..
सक्ती , नगर के हृदय स्थल हटरी चौक शुभम ग्रीन में दुबल धनिया परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा व्यास पूज्य अतुल कृष्ण भारद्वाज जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान चतुर्थ दिन ज्ञान की महिमा के बारे में श्रद्धालु जनों को बताया कि मनुष्य को गृहस्थ जीवन जीने के लिए भगवान शिव के आदर्शों पर चलना चाहिए।
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भगवान शिव अपने विवाह के श्रृंगार से समाज को बताना चाहते है कि मेरे पर नाग विराजमान है, जिसका तात्पर्य है कि संसार के समस्त प्राणियों के सिर पर कालरूपी नाग बैठा है, जो प्रत्येक दिन उसकी आयु को खा र है। भगवान शेर की खाल धारण कर यह बताना चाह रहे हैं कि मनुष्य कोगृहस्थ जीवन संयमित जीवन सिंह की तरह जीना चाहिए, क्योंकि शेर अपने जीवन मैं एक नारीव्रत धारी है। लोगों ने कहा है कि विवाह में दुल्हा घोड़े पर बैठता है, परन्तु भगवान शिव नन्दी पर बैठे हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि नन्दी धर्म का प्रतीक है और घोड़ा काम का प्रतीक है। भगवान शिव पूरे शरीर पर चिता की राख लपेटे हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि दुनिया के सभी प्राणियों को एक दिन चिता में ही जाना है। पूज्य व्यास जी ने भगवान श्री राम एवं भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का सुन्दर वर्णन करते हुए कहा है कि जब-जब धरती पर अधर्म का बोल-बाला होता है, तब-तब भगवान किसी ना किसी रूप में धरती पर अवतरित होकर असुरों का नाश करते हैं, जिससे अधर्म पर धर्म की विजय होती हैं। भगवान को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को फ्रिज में बने फ्रिजर की तरह होना चाहिए अर्थात काम, क्रोध, मोह, लालच एवं ईर्ष्या को त्याग कर भक्ति एवं सच्चे मन की साना से प्राप्त कर सकते हैं।
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“निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपन छल छिद्र ना भावा।”
त्रेतायुग में जब असुरों की शक्ति बढ़ने लगी. धर्म प्राय लुप्त हो रहा था, तब मां कौशल्या की कोख से भगवान श्री राम ने जन्म लिया। द्वापर में माँ देवकी की कोख से भगवान श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया। पूज्य व्यास ने कहा कि भगवान कण-कण में विराजमान हैं, सर्वत्र विद्यमान हैं। प्रेम से पुकारने पर कहीं भी प्रकट हो सकते हैं। भगवान तो निर्मल मन एवं भक्ति देखते हैं, इसीलिए कहा गया हैं कि हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम से प्रकट होंही मैं जाना”
भगवान श्री कृष्ण के जन्म पर कथा व्यास ने सुन्दर भजन –
नंद लाना प्रकट भयो आज बृज में लडुआ बटत है ..
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कान पुण्य देवकी ने किन्हों की गोद में झूले नंदलाल, बृज में लडुआ बटत है।” को सुगर भवन में उपस्थित हजारों श्रोता झूम उठे। भवन का दृश्य ऐसा दिख पड़ रहा था, जैसे साक्षात भगवान प्रकट हुए हैं।
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कथा व्यास ने धर्म और सम्प्रदाय में अन्तर को समझाते हुए बताया कि धर्म व्यकि को अन्दर से एकजुटता का भाव पैदा कराता है, वहीं सम्प्रदाय व्यक्ति को बाहर रूप में एक बनाता है। धर्म और सम्प्रदाय की व्याख्या करते हुए कथा व्यास कहा है कि एक पुस्तक, एक पूजा स्थल एक पैगम्बर एक पूजा पद्धति मनुष्य क सीमित संकुचित बनाती है, जबकि ईश्वर को विभिन्न रूपों में विभिन्न माध्यमों से स्मरण करना दर्शन करना मात्र सनातन धर्म सिखाता है। आज मेरे देश की संस्कृति, सभ्यता, खान-पान इत्यादि पर पाश्चात्य संस्कृति का असर दिखाई पड़ रहा है। कथा व्यास ने माता और बहनों से आग्रह किया कि गर्भवती माताओं का चिन्तन–मनन, खान-पान, पठन-पाठन, रहन-सहन होने वाले बच्चे पर अत्यन्त प्रभाव उसने हैं, इसीलिए गर्भावस्था के समय माताओं को भगवत भजन का स्मरण करने के साथ सात्विक भोजन एवं आध्यात्मिक चिन्तन-मनन करना चाहिए।
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