खबर सक्ती ...
समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन पर कार्यशाला आयोजित, कृषि विभाग के मैदानी अमलो को दिया गया प्रशिक्षण ..
कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में कृषि वैज्ञानिकों का रसायन के संतुलित उपयोग पर व्याख्यान ,
कृषि वैज्ञानिकों की सलाह, जैविक खाद का उपयोग बढ़ाया जावे ,
खेती में रसायन के असंतुलित उपयोग से बिगड़ रही है जमीन की तासीर ..
सक्ती, वर्तमान में जिले में कृषकों के द्वारा खेती में रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक दवा का असंतुलित उपयोग कर रहे हैं, जिससे मिट्टी की तासीर लगातार खराब हो रही है। उपजाऊ पन घट रहा है। अनाज की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, मानव स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। वायुमंडल प्रदूषित हो रहा है।
विगत दिवस कृषि उत्पादन आयुक्त छत्तीसगढ़ राज्य के द्वारा जिला सक्ती में नत्रजनीय उर्वरक के अधिक उपयोग पर चिंता जताई गई, तथा इस पर कार्यशाला आयोजित कर कृषि विभाग के मैदानी अमलो को प्रशिक्षण देने का निर्देश दिया गया। कलेक्टर श्रीमती नुपुर राशि पन्ना के निर्देशन पर कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में कार्यशाला आयोजित किया गया। जिसमें कृषि विज्ञान केन्द्र जांजगीर के वैज्ञानिकों के द्वारा मैदानी अमलो को प्रशिक्षण दिया गया। उर्वरको के संतुलित उपयोग तथा अन्य वैकल्पिक व्यवस्था पर विस्तार से जानकारी दी गई।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव दीक्षित ने कहा कि जिले में किसान नत्रजनीय उर्वरक यूरिया का अधिक उपयोग कर रहे हैं। जिससे मिट्टी की तासीर बिगड़ रही है। जल धारण क्षमता कम हो रही है, मिट्टी अम्लीय हो रहा है, जिससे धीरे धीरे मिट्टी की उपजाऊ पन कम हो रही है। किसानों को समझाइश दी जाये कि नत्रजनीय उर्वरक का उपयोग कम करें, पोटास का उपयोग करें, साथ ही गोठानो में मिलने वाली वर्मीखाद का उपयोग करें। किसानों को जागरूक किया जाये कि नत्रजन, स्फुर, पोटास का संतुलन बनाए रखें, इसके साथ ही जिंक , सल्फर, कैल्शियम फास्फोरस आयरन जैसे माइक्रोन्यूट्रींस खाद का उपयोग करें। इससे मिट्टी की उपजाऊ बनी रहेगी।
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक शशिकांत सूर्यवंशी ने कहा कि सही समय पर, सही मात्रा में, सही खाद का उपयोग करने पर भी अधिकतम उपज प्राप्त हो सकती है। अधिक मात्रा में यूरिया के उपयोग से पौधा हर भरा होता है, पर कीट व्याधि की आक्रमण बढ़ती है। जिसके बचाव के कीटनाशक दवा का उपयोग करना पड़ेगा। इससे अनावश्यक खर्च बढ़ेगा, तथा मिट्टी भी प्रदूषित होगा।
उप संचालक कृषि सक्ती ने कहा कि यूरिया के अधिक उपयोग से खेती में लाभ नहीं होगा, किन्तु शासन की अनुदान राशि का व्यय बढ़ जाता है। इसलिए किसान मैदानी अमलो के सलाह के अनुसार खाद का उपयोग करें। इससे स्वयं का अनावश्यक खर्च नहीं होगा ,साथ ही मिट्टी की दसा भी बनी रहेगी।
इस कार्यशाला में अनुविभागीय अधिकारी कृषि कृतराज, सभी वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी एवं सभी विकास खंड के मैदानी अमले उपस्थित थे।
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