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सजलकार रमेश सिंघानिया के दो सजल संग्रह दोष नहीं कुछ दर्पण का’ और आदमी पत्थर हुआ का लोकार्पण समारोह होगा 11 जून को ..

सजलकार रमेश सिंघानिया का प्रथम सजल संग्रह “अवसर नहीं प्रतीक्षा करता” का प्रकाशन इससे पहले 2021 में हो चुका है जिसे पाठकों एवं जनप्रतिनिधियों ने पढ़ा चाव से ..
सक्ती, क्षेत्र के लब्ध प्रतिष्ठित सजलकार रमेश सिंघानिया के प्रकाशनाधीन दो सजल संग्रह ‘दोष नहीं कुछ दर्पण का’ और ‘आदमी पत्थर हुआ’ का लोकार्पण समारोह 11 जून को उनके जन्मदिवस पर होगा। इससे पहले 2021 में उनका प्रथम सजल संग्रह “अवसर नहीं प्रतीक्षा करता” का प्रकाशन हो चुका है जिसे पाठकों ने चाव से पढ़ा। सिंघानिया के द्वितीय सजल संग्रह की भूमिका जाॅंजगीर के ख्याति लब्ध साहित्यकार एवं कवि विजय राठौर ने लिखी है जिसमें उन्होंने रमेश सिंघानिया को दृष्टि संपन्न सजग सजलकार बताते हुए कहा कि रमेश सिंघानिया विशुद्ध सनातनी और उच्चादर्शों के पक्के समर्थक हैं। वे सजल के विधान के साथ छंद विधान के यति, गति और लय को साधने में भी निष्णात हैं। उन्होंने सिंघानिया को नारी शक्ति का प्रबल समर्थक बताते हुए कहा कि अपनी सजलों से वे उन्हें ताकत प्रदान करते हैं इसके लिए वे इनकी कृति से ये उदाहरण भी पेश करते हैं-
पुत्र कल दीपक कहाता, शान से परिवार का।
किंतु बेटी दो कुलों को है सदा ही तारती
तथा
क्यों प्रतीक्षा कर रही हो, द्रौपदी गोविंद की।
काट डालो हाथ उसके, खींचता जो चीर है।

उन्होंने कहा कि रमेश सिंघानिया ने अपने सजल संग्रह में मिथकों का उपयोग भी प्रभावशाली ढंग से किया है। समाज में दबंगों की दादागिरी केवल गरीबों पर चलती है। समर्थ लोगों के सामने वे हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। जिसका उदाहरण वे रमेश सिंघानिया की इन पंक्तियों से देते हैं-
हो गया सागर उपस्थित, क्रोध में पा राम को।
लोग भी कमजोर की, बातें कभी सुनते नहीं।।
विजय राठौर ने कहा कि रमेश सिंघानिया के सजल संग्रह “दोष नहीं कुछ दर्पण का” से पाठकों को लगेगा कि सजलकार ने मेरी ही बातें, मेरा ही दुख-दर्द और मेरी ही चिंताओं और दुविधाओं को कलमबद्ध किया है।

जाॅंजगीर के ही लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार ईश्वरी यादव ने रमेश सिंघानिया को प्रतिनिधि सजलकार बताते हुए कहा कि सजल हिंदी की नूतन गीति-विधा है जो हिंदी भाषा के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है। यह हिंदी की सेवा का प्रकल्प है। उन्होंने कहा कि व्यवसाय और राजनीति से संबद्ध सजलकार सिंघानिया की लेखनी ने अल्पावधि में जो प्रौढ़ता प्राप्त की है वह स्तुत्य है। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि रमेश सिंघानिया अपनी सारस्वत साधना से सजल के माध्यम से हिंदी साहित्य में श्री वृद्धि कर रहे हैं।उनकी भाषा में प्रांजलता है, सहजता है, संप्रेषणियता है। वे भाव के अनुरूप शब्दों को प्रतिष्ठित करने में दक्ष हैं। उन्होंने कहा कि आज मानवीय संवेदना का क्षरण हो रहा है लोग दूसरों की पीड़ा को अनदेखी करके निकल जाते हैं; पत्थर दिल मनुष्य पर करुणा का कोई असर नहीं होता। इस सिलसिले में वे सिंघानिया के तृतीय सजल संग्रह “आदमी पत्थर हुआ” की इन पंक्तियों को उद्धरित करते हैं।
मर रही संवेदनाऍं, आदमी पत्थर हुआ।
आदमी की ऑंख में, रहती नहीं कोई नमी।।
उन्होंने रमेश सिंघानिया की सजलों को परिपक्व और श्रेष्ठ बताते हुए कहा कि सजल संग्रह की भाषा सरल और बोधगम्य है। उन्होंने कहा कि आज लोकशाही दूषित हो गई है, राजनीति षड्यंत्रों में पल रही है। इस बात को सिंघानिया ने निम्न प्रभावशाली पंक्तियों के माध्यम से व्यक्त किया है।
जीम रहे हैं धन सरकारी, काम दिखाकर केवल जाली।
कागज पर ही जाने कितने, खुदे-पटे हैं ताल यहाॅं पर।।
उन्होंने कहा की सजल संग्रह में सूक्तिपरक पदिकों से सजलों में आकर्षण की वृद्धि हुई है। सजलकार रमेश सिंघानिया को शुभकामनाऍं प्रेषित करते हुए उन्होंने कहा कि विश्वास है कि उनका यह सजल संग्रह पूर्व के सजल संग्रहों की तरह लोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा।
लोकार्पण के इस अवसर पर एक वृहद कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया जाएगा जिसमें बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर-चांपा, सक्ती एवं रायगढ़ जिले के कवि गण भाग लेंगे जो कि काव्य की विभिन्न विधाओं सजल, गजल, दोहे, मुक्तक, गीत, नवगीत, रूबाई, चौपाई आदि विभिन्न छंदयुक्त रचनाओं की प्रस्तुति देकर नौ रसों की गंगा बहाऍंगे। राष्ट्रीय कवि संगम जिला सक्ती एवं सांस्कृतिक विकास मंच सक्ती की जुगलबंदी में आयोजित यह कवि सम्मेलन जिसे सम्भागीय कवि सम्मेलन भी कहा जा सकता है में क्षेत्र के अनेक स्थापित कवि भाग लेंगे; पूरे क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ने में सफल होगा।
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